पुराणों में गर्भपात (भ्रूणहत्या) क्यों हैं महापाप और गर्भपात करवाने की क्या सजा मिलती हैं?

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दोस्तों आज के इस लेख में गर्भपात से जुड़ी हुई कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं क्योंकि पुराणों के अनुसार गर्भ यानी भ्रूणहत्या क्या है, और और हमें क्यों गर्भपात करवाने या करने से बचना चाहिए ? यदि आप जानते हैं तो अच्छा है यदि नही जानते हैं तो जानिए पुराणों में गर्भपात (भ्रूणहत्या) क्यों हैं महापाप और गर्भपात करवाने की क्या सजा मिलती हैं?

भ्रूणहत्या क्या है?

गर्भ यानी भ्रूण में ही नवजात शिशु जो की वह अमूक अवस्था में होता हैं भ्रूण अर्थात गर्भ में ही बच्चे का गर्भपात करना या करवा देना भ्रूणहत्या या गर्भपात कहलाता है। पुराणों के अनुसार भ्रूणहत्या (गर्भपात) को सबसे बड़ा महापाप कहा गया है। लेकिन किसी कारणवश या किसी की जान बचाने के लिए गर्भपात या भ्रूणहत्या की जाती हैं तो वह भाग्य अर्थात ईश्वर पर अधीन होती हैं परन्तु अपने स्वार्थ के लिए गर्भपात  (भ्रूणहत्या) किया जाता हैं तो यह पाप महापाप कहा गया हैं इसलिए गर्भपात (भ्रूणहत्या) करवाने से बचना चाहिए।

पुराणों में गर्भपात (भ्रूणहत्या) क्यों हैं और गर्भपात करवाने की क्या सजा मिलती हैं?

पाराशर स्मृति के अनुसार ब्रह्माहत्या से जो पाप लगता हैं उससे दुगुना पाप गर्भपात से लगता हैं। इस गर्भपातरूप महापाप का कोई प्रायश्चित भी नही हैं। इसमें तो उस स्त्री को पुरूष या पुरूष को स्त्री का त्याग कर देने का ही विधान है जो अपनी स्वार्थ या भौतिक सुखों या शारिरिक सुखों के कारण अपने गर्भ में पल रहे बच्चे का गर्भपात करवा देती हैं या गर्भपात कराने को मजबूर कर देते हैं।

मनु स्मृति के अनुसार यदि अन्न पर गर्भपात करने वाले या करवाने वालों की दृष्टि भी पड़ जाए तो वह अन्न अभक्ष्य अर्थात नही खाने योग्य हो जाता हैं।

श्री मद्भागवत गीता के अनुसार गर्भस्थ शिशु को  अनेक जन्मों का ज्ञान होता हैं, इसलिए उसको ऋषि (ज्ञानी) कहा गया हैं। अतः उसकी हत्या से बढ़कर और क्या पाप होगा !

नारद पुराण के अनुसार श्रेष्ठ पुरुषों ने ब्रह्मा हत्या आदि पापों का प्रायश्चित बताया हैं, पाखंडी और परनिंदक का भी उद्धार होता हैं; किन्तु  जो गर्भस्थ शिशु की हत्या करता हैं, उसके उद्धार का कोई उपाय नहीं हैं।

देवी भागवत के अनुसार संन्यासी की हत्या करनेवाला तथा गर्भ की हत्या करने वाला भारत में ‘महापापी’ कहलाता हैं। वह मनुष्य कुंभीपाक नरक में गिरता है। फिर हजार जन्म जींद, सौ जन्म सुअर, सात जन्म कौआ और सात जन्म सर्प होता हैं। फिर साठ हजार वर्ष विष्ठा का कीड़ा होता हैं। फिर अनेक जन्मों में बैल होने के बाद कोढ़ी मनुष्य होता हैं।

धर्म के अनुसार संसार का कोई भी श्रेष्ठ धर्म गर्भपात के लिए समर्थन नहीं देता हैं और नहीं दे सकता है क्योंकि यह कार्य मनुष्यता के विरूद्ध हैं। जीवमात्र को जीने का अधिकार है। उसको गर्भ में ही नष्ट करके उसके अधिकार को छीनना महापाप हैं। अतः गर्भ में बालक निर्बल और असहाय अवस्था में रहता है वह अपने बचाव का कोई उपाय भी नहीं कर सकता तथा अपनी हत्या का प्रतिकार भी नहीं कर सकता। अपनी हत्या से बचने के लिए वह पुकार भी नही कर सकता, रो भी नहीं सकता। उसका कोई अपराध, कसूर भी नहीं है- ऐसी अवस्था मे जन्म लेने से पहले ही उस निरपराध, निर्दोष, असाह बच्चे की हत्या कर देना पाप की, कृतघ्नता की, दुष्टता की, नृशंसता की, क्रूरता की, अमानुषता की, अन्याय की आखिरी हद हैं।

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