Pitru Paksha : जानिए पितृपक्ष में गया में पिंडदान (श्राद्ध) करने से क्या होता हैं।

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Pitru Paksha : जानिए पितृपक्ष में गया में पिंडदान (श्राद्ध) करने से क्या होता हैं। क्योंकि आज के इस लेख में हम आपको गया में होने वाले पितृपक्ष के प्रेतशिला में तपर्ण और अर्पण करने से होने वाले अक्षय लाभ के बारे में बताएंगे। क्योंकि पुराणों के अनुसार, गया में भगवान विष्णु पितृ देवता के रूप में निवास करते हैं। गया तीर्थ में श्राद्ध कर्म करने से मनुष्य पितृऋण, मातृऋण और गुरूऋण से मुक्त होता हैं। परन्तु इसके लिए पितरों की पूजा और तर्पण सही दिशा में करना भी जरूरी हैं।

गया में पिंडदान (श्राद्ध) करने का महत्व

कहा जाता हैं कि भारत के किसी भी पावन भूमि जैसे- त्रयम्बकेश्वर, गंगासागर, पिहोवा, गढ़गंगा, बद्रीनाथ, प्रयागराज, हरिद्वार, ऋषिकेश, इत्यादि तीर्थ स्थलों पर। आप हर साल के पितृपक्ष में पितरों की सद्गति के लिए पितरों का श्राद्ध कर सकतें है, या पितृदोष निवारण के लिए अनुष्ठान और पूजा-अर्चना कर सकते हैं परन्तु शास्त्रों के अनुसार गया तीर्थ स्थल पर पितृपक्ष में श्राद्ध करने का कुछ विशेष ही महत्व हैं-

  • गया में श्राद्ध और पिंडदान करने से सात पीढ़ियों के पितरों को मुक्ति मिल जाती हैं।
  • गया में पूर्व श्रद्धा और विधि-विधान के साथ श्राद्ध और तर्पण करने से पितृ, देवता, गंधर्व, यक्ष आदि अपना शुभ आशीर्वाद देते हैं, जिससे मनुष्य के समस्त पापों का नाश हो जाता है और परिवार में सुख-सम्रद्धि आती हैं।
  • कहा जाता हैं कि गया में यज्ञ, श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करने से मनुष्य को स्वर्गलोक और ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती हैं।
  • गया के धर्म पृष्ठ, ब्रह्मसप्त, और अक्षय वट के समीप जो कुछ भी पितरों को अर्पण किया जाता हैं वह अक्षय होता हैं और बदले में हमें अक्षयफल प्राप्त होते हैं।
  • गया कि प्रेतशिला में पिंडदान करने से पितरों का उद्धार होता हैं। (पिंडदान करने के लिए काले तिल, जौ का आटा, खीर, चावल, दूध, सत्तू आदि का प्रयोग किए जाने का विधान हैं।
  • यदि किसी मनुष्य की मृत्यु, संस्कार रहित दशा में अथवा किसी पशु, सर्प, या जंतु के काटने से हो जाती है, तो गया तीर्थ में उस मृत व्यक्ति का श्राद्ध कर्म करने से वह बन्धन मुक्त होकर स्वर्ग को गमन करता हैं।
  • गया में श्राद्ध कर्म करने के लिये दिन और रात का कोई विचार नहीं है। दिन या रात में किसी भी समय श्राद्ध कर्म और तर्पण किया जा सकता है।

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गया ही क्यों हैं पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए प्रमुख तीर्थ स्थल ?

पितृपक्षगया में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किए जाने के बारे में एक प्राचीन कथा का उल्लेख पुराणों में मिलता हैं। कथा के अनुसार, गयासुर नाम के एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आर्शीवाद प्राप्त कर लिया। भगवान से मिले आर्शीवाद का दुरुपयोग करकें गयासुर ने देवताओं को ही परेशान करना शुरू कर दिया। गयासुर के अत्याचार से संतप्त देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की की वह गयासुर असुर से समस्त देवताओं की रक्षा करें। इसके कुछ दिनों पश्चात भगवान विष्णु ने गयासुर का अपने गदा से उसका वध कर दिया। बाद में भगवान विष्णु ने गयासुर के सिर पर एक भारी पत्थर रखकर उसे मोक्ष प्रदान किया। कहते हैं कि गया स्थित विष्णुपद मन्दिर में वह पत्थर आज भी मौजूद है। भगवान विष्णु ने जिस स्थान पर गयासुर असुर के वध किया उस स्थान को गया नाम से जाना जाता हैं और उस तीर्थ को मुक्ति धाम तीर्थ के नाम से मान्यता मिली और भगवान विष्णु को मुक्तिदाता माना गया। यही कारण है कि गया पितरों के श्राद्ध और तर्पण के लिए प्रमुख स्थल माना जाता हैं।

जानिए : पितृपक्ष में क्या करें क्या न करें

इस लेख के माध्यम हमारा कर्तव्य आप सभी को पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने का प्रमुख तीर्थ स्थल के बारें में सम्पूर्ण जानकारी दी है। यदि आप गया में तर्पण , पिंडदान या श्राद्ध करने के इच्छुक हैं तो अवश्य जाइए। नहीं हैं तो आप अपने घर पर या किसी भी पवित्र स्थान पर अपनी इच्छानुसार विधि विधान से श्राद्धकर्म सकते हैं। 

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